इक्यावन शक्तिपीठो

इक्यावन  शक्तिपीठो इक्यावन  शक्तिपीठो

इक्यावन शक्तिपीठ

तन्त्रचूडामणि में पीठों की संख्या बावन दी गई है, शिवचरित्र में इक्यावन और देवीभागवत में एक सौ आठ। कालिकापुराण में छब्बीस उपपीठों का वर्णन है। देवीपुराण में ५१ शक्तिपीठों का वर्णन है। पर साधारणतया पीठों की संख्या इक्यावन मानी जाती है। इनमें से अनेक पीठ तो इस समय अज्ञात हैं।सती के शव के विभिन्न अंग और आभूषण गिरे, वहाँ बावन शक्तिपीठो का निर्माण हुआ।


मुंबई से कोल्हापुर सीधे रेल मार्ग नहीं है, जबकि यह महाराष्ट्र का मुख्य नगर है। यह मुंबई से ४७२ किलोमीटर दक्षिण पूर्व में निराज स्टेशन से ४८ किलोमीटर आगे पश्चिम में स्थित है। पुणे से यह २८० किलोमीटर दक्षिण पड़ता है।

करवीर में स्थित महालक्ष्मी का यह मंदिर अति प्राचीन है। इसकी वास्तुरचना श्रीयंत्र पर है। यह पाँच शिखरों, तीन मण्डपों से शोभित है। तीन मण्डप हैं- गर्भ गृह मण्डप, मध्य मण्डप, गरुड़ मण्डप। प्रमुख एवं विशाल मध्य मण्डप में बड़े-बड़े ऊँचे, स्वतंत्र १६x१२८ स्तंभ हैं। हज़ारो मूर्तियाँ शिल्प आकृति में हैं।

७.विशालाक्षी शक्तिपीठ
उत्तर प्रदेश, वाराणसी के मीरघाट पर स्थित है शक्तिपीठ जहां माता सती के दाहिने कान के मणि गिरे थे। यहां की शक्ति विशालाक्षी तथा भैरव काल भैरव हैं।

८. गोदावरी तट शक्तिपीठ
आंध्रप्रदेश के कब्बूर में गोदावरी तट पर स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता का वामगण्ड यानी बायां कपोल गिरा था। यहां की शक्ति विश्वेश्वरी या रुक्मणी तथा भैरव दण्डपाणि हैं।
आंध्र के गोदावरी स्टेशन के पास गोदावरी के पार कुब्बूर में कोटितीर्थ है यह शक्ति पीठ यहाँ स्थित है।

९.शुचीन्द्रम शक्तिपीठ
तमिलनाडु, कन्याकुमारी के त्रिासागर संगम स्थल पर स्थित है यह शुचीन्द्रम शक्तिपीठ, जहां सती के उफध्र्वदन्त (मतान्तर से पृष्ठ भागद्ध गिरे थे। यहां की शक्ति नारायणी तथा भैरव संहार या संकूर हैं।

शुचींद्रम क्षेत्र को ज्ञानवनम् क्षेत्र भी कहते हैं। महर्षि गौतम के शाप से इंद्र को यहीं मुक्ति मिली थी, वह शुचिता (पवित्रता) को प्राप्त हुए, इसीलिए इसका नाम शुचींद्रम पड़ा।

१०.पंच सागर शक्तिपीठ
इस शक्तिपीठ का कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है लेकिन यहां माता का नीचे के दान्त गिरे थे। यहां की शक्ति वाराही तथा भैरव महारुद्र हैं।

११.ज्वालामुखी शक्तिपीठ
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जनपद के अंतर्गत ‘ज्वालामुखी का मंदिर’ ही शक्तिपीठ है। यहाँ माता सती की ‘जिह्वा’ गिरी थी। यहाँ माता सती ‘सिद्धिदा अम्बिका’ तथा भगवान शिव ‘उन्मत्त’ रूप में विराजित है। हिमाचल प्रदेश की काँगड़ा घाटी में, पठानकोट-जोगिंदर नगर नैरोगेज़ रेलमार्ग पर ज्वालामुखी रोड स्टेशन से २१ किलोमीटर, काँगड़ा से ३४ किलोमीटर तथा धर्मशाला से ५६ किलोमीटर दूर कालीधर पर्वत की सुरम्य तलहटी में स्थित है, ‘ज्वालादेवी’ या ‘ज्वालामुखी’ शक्तिपीठ। यहाँ सती की ‘जिह्वा का निपात’ हुआ था तथा जहाँ मंदिर में कोई प्रतिमा नहीं है, वरन् वहाँ माँ प्रज्जवलित प्रस्फुटित होती हैं। यहाँ की शक्ति ‘सिद्धिदा’ व भैरव ‘उन्मत्त’ हैं। यहाँ पर मंदिर के अंदर कुल १० ज्योतियाँ निकलती हैं- दीवार के गोखले से ४, मध्य कुण्ड की भित्ति से ४ दाहिनी दीवार से एक तथा कोने से एक।

१२.भैरव पर्वत शक्तिपीठ
इस शक्तिपीठ को लेकर विद्वानों में मतदभेद है। कुछ गुजरात के गिरिनार के निकट भैरव पर्वत को तो कुछ मध्य प्रदेश के उज्जैन के निकट क्षीप्रा नदी तट पर वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं, जहां माता का उफध्र्व ओष्ठ गिरा है। यहां की शक्ति अवन्ती तथा भैरव लंबकर्ण हैं। उज्जैन भोपाल (मध्य प्रदेश राजधानी) से १८५ कि.मी. तथा इंदौर से ८० किलोमीटर नई दिल्ली-पुणे रेलमार्ग पर स्थित है।

१३. कश्मीर शक्तिपीठ
जम्मू-कश्मीर के अमरनाथ में स्थित है यह शक्तिपीठ जहां माता का कण्ठ गिरा था। यहां की शक्ति महामाया तथा भैरव त्रिसंध्येश्वर हैं।
कश्मीर में अमरनाथ की पवित्र गुफा में भगवान शिव के हिम-ज्योतिर्लिंग के दर्शन होते हैं। वहीं पर हिम-शक्तिपीठ भी बनता है। एक गणेश-पीठ, एक पार्वती पीठ भी हिमनिर्मित होता है। पार्वती पीठ ही शक्तिपीठ स्थल है। श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को अमरनाथ के दर्शन के साथ-साथ पार्वती शक्तिपीठ का भी दर्शन होता है। यहाँ सती के अंग तथा अंगभूषण की पूजा होती है, क्योंकि यहाँ उनके कण्ठ का निपात हुआ था। यहाँ की शक्ति ‘महामाया’ तथा भैरव ‘त्रिसन्ध्येश्वर’ है।

१४.नन्दीपुर शक्तिपीठ
पश्चिम बंगाल के बोलपुर (शांति निकेतन) से ३३ किमी दूर सैन्थिया रेलवे जंक्शन से अग्निकोण में, थोड़ी दूर रेलवे लाइन के निकट ही एक वटवृक्ष के नीचे देवी मन्दिर है, यह नन्दीपुर शक्तिपीठ है, जहां देवी की देह का कण्ठहार गिरा था। यहां कि शक्ति निन्दनी और भैरव निन्दकेश्वर हैं।

१५.श्री शैल शक्तिपीठ
आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद से २५० कि.मी. दूर कुर्नूल के पास श्री शैल का शक्तिपीठ है यहाँ का निकटस्थ रेलवे स्टेशन मरकापुर रोड है तथा निकटस्थ वायुयान अड्डा हैदराबाद है।
जहां माता का ग्रीवा गिरा था। यहां की शक्ति महालक्ष्मी तथा भैरव संवरानन्द अथव ईश्वरानन्द हैं।

१६. नलहरी शक्तिपीठ
पश्चिम बंगाल राज्य के बोलपुर शांति निकेतन से ७५ किलोमीटर तथा सैंथिया जंक्शन से ४२ किलोमीटर दूर नलहरी रेलवे स्टेशन है, जहाँ से ३ किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य कोण) में एक ऊँचे से टीले पर एक शक्तिपीठ है, जहां माता का उदरनली गिरी थी। यहां की शक्ति कालिका तथा भैरव योगीश हैं।

१७. मिथिला शक्तिपीठ
इसका निश्चित स्थान अज्ञात है। स्थान को लेकर मन्तारतर है तीन स्थानों पर मिथिला शक्तिपीठ को माना जाता है, वह है नेपाल के जनकपुर, बिहार के समस्तीपुर और सहरसा, जहां माता का वाम स्कंध् गिरा था। यहां की शक्ति उमा या महादेवी तथा भैरव महोदर हैं।

१८. रत्नावली शक्तिपीठ
इसका निश्चित स्थान अज्ञात है, बंगाज पंजिका के अनुसार यह तमिलनाडु के चेन्नई में कहीं स्थित है रत्नावली शक्तिपीठ जहां माता का दक्षिण स्कंध् गिरा था। यहां की शक्ति कुमारी तथा भैरव शिव हैं।

१९. अम्बाजी शक्तिपीठ, प्रभास पीठ
पुराने जूनागढ़ के गिरनार पर्वत के प्रथम शिखर पर देवी अम्बिका का भव्य-विशाल मंदिर है। कहते हैं पार्वती यहीं निवास करती हैं। अम्बिका (अम्बाजी) के इस मंदिर को शक्तिपीठ मानते हैं।
गुजरात गूना गढ़ के गिरनार पर्वत के प्रथत शिखर पर देवी अिम्बका का भव्य विशाल मन्दिर है, जहां माता का उदर गिरा था। यहां की शक्ति चन्द्रभागा तथा भैरव वक्रतुण्ड है। ऐसी भी मान्यता है कि गिरिनार पर्वत के निकट ही सती का उध्र्वोष्ठ गिरा था, जहां की शक्ति अवन्ती तथा भैरव लंबकर्ण है।

२०.जालंध्र शक्तिपीठ
शक्तिपीठों के वर्णन में जालंधर पीठ का नाम आता है, किन्तु वर्तमान में जालंधर नगर में कोई देवीपीठ नहीं मिलता। अनुमानत: प्राचीन जालंधर से त्रिगर्त प्रदेश (वर्तमान कांगड़ा घाटी) मानना उचित होगा, जिसमें कांगड़ा शक्ति त्रिकोणपीठ की तीन जाग्रत देवियाँ विराजती हैं। वैसे यहाँ विश्वमुखी देवी का मंदिर है, जहाँ पीठ स्थान पर स्तनमूर्ति कपड़े से ढंकी रहती है और धातु निर्मित मुखमण्डल बाहर दिखता है। इसे स्तनपीठ एवं त्रिगर्त तीर्थ भी कहते हैं और यही जालंधर पीठ नामक शक्तिपीठ माना जाता है। यहाँ सती के वामस्तन का निपात हुआ था। यहाँ की शक्ति ‘त्रिपुरमालिनी’ तथा भैरव ‘भीषण’ हैं।

२१. रामागरि शक्तिपीठ
कुछ मैहर (मध्य प्रदेश) के शारदा देवी मंदिर को शक्तिपीठ मानते हैं, तो कुछ चित्रकूट के शारदा मंदिर को शक्तिपीठ मानते हैं। दोनों ही स्थान मध्य प्रदेश में हैं,रामगिरि पर्वत चित्रकूट में है,चित्रकूट हजरत निजामुद्दीन-जबलपुर रेलवे लाइन पर स्थित है,स्टेशन का नाम ‘चित्रकूटधाम कर्वी’,लखनऊ से २८५ कि.मी. हजरत निजामुद्दीन से ६७० कि.मी. दूर है। मानिकपुर स्टेशन से ३० कि.मी. पहले चित्रकूटधाम कर्वी है।
जहां माता का दाहिना स्तन गिरा था। यहा की शक्ति शिवानी तथा भैरव चण्ड हैं।

२२. वैद्यनाथ का हार्द शक्तिपीठ
झारखण्ड के गिरिडीह, देवघर स्थित है वैद्यनाथ हार्द शक्तिपीठ, जहां माता का हृदय गिरा था। यहां की शक्ति जयदुर्गा तथा भैरव वैद्यनाथ है। एक मान्यतानुसार यहीं पर सती का दाह-संस्कार भी हुआ था।

२३.वक्रेश्वर शक्तिपीठ
पूर्वी रेलवे की मुख्य लाइन पर आण्डाल जंक्शन से सैंथिया लाइन पर आण्डाल से लगभग ३९ किलोमीटर दूर एक छोटा-सा स्टेशन है- दुब्राजपुर, जहाँ से लगभग १२ किलोमीटर उत्तर में अनेक तप्त झरने हैं।
वहीं पर शिव के अनेक शिवालय भी हैं। यह स्थान वक्त्रेश्वर कहा जाता है,यहीं वक्त्रेश्वर शक्तिपीठ है जो वाकेश्वर नाले के तट पर स्थित होने के कारण कहा जाता है।

माता का यह शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के सैिन्थया सैंथिया स्टेशन से लगभग ११ किलोमीटर दूर एक श्मशान की भूमि में विद्यमान है। यहाँ का मुख्य मंदिर वक्त्रेश्वर शिव मंदिर है। में स्थित है जहां माता का मन गिरा था। यहां की शक्ति महिषासुरमदिनी तथा भैरव वक्त्रानाथ हैं।

२४.कण्यकाश्रम कन्याकुमारी
तमिलनाडु के कन्याकुमारी के तीन सागरों हिन्द महासागर, अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ीद्ध के संगम पर स्थित है तीन सागरों के संगम-स्थल पर स्थित कन्याकुमारी के मंदिर में ही भद्रकाली का मंदिर है। यह कुमारी देवी की सखी हैं। यह मंदिर ही कण्यकाश्रम शक्तिपीठ है, जहां माता का पीठ मतान्तर से उध्र्वदन्त गिरा था। यहां की शक्ति शर्वाणि या नारायणी तथा भैरव निमषि या स्थाणु हैं।
कन्याकुमारी रेल तथा सड़क मार्ग से जुड़ा है। यह त्रिवेंद्रम से ८० किलोमीटर दूर है। यहाँ चेन्नई तथा त्रिवेंद्रम से रेल या बस से भी पहुँचा जा सकता है।

२५.बहुला शक्तिपीठ
पश्चिम बंगाल के हावड़ा से १४५ किलोमीटर दूर पूर्वी रेलवे के नवद्वीप धाम से ४१ कि.मी. दूर कटवा जंक्शन से पश्चिम की ओर केतुग्राम या केतु ब्रह्म गाँव में स्थित है-बहुला शक्तिपीठ
जहां माता का वाम बाहु गिरा था। यहां की शक्ति बहुला तथा भैरव भीरुक हैं।

२६.उज्जयिनी शक्तिपीठ
भूत-भावना महाकालेश्वर की क्रीड़ा-स्थली मध्य प्रदेश के अवंतिका (उज्जैन) पावन क्षिप्रा के दोनों तटों पर स्थित है। वहीं पार्वती हरसिद्धि देवी का मंदिर शक्तिपीठ, रुद्रसागर या रुद्र सरोवर नाम से तालाब के निकट है,
जहां माता का कुहनी गिरा था। यहां की शक्ति मंगल चण्डिका तथा भैरव मांगल्य कपिलांबर हैं।

२७.मणिवेदिका शक्तिपीठ
राजस्थान में अजमेर से ११ किलोमीटर दूर पुष्कर एक महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थल है।
मणिवेदिका शक्तिपीठ पुष्कर में स्थित है जिसे गायत्री मन्दिर के नाम से जाना जाता है यहीं माता की कलाइयां गिरी थीं। यहां की शक्ति गायत्री तथा भैरव शर्वानन्द हैं।

२८.प्रयाग शक्तिपीठ
उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में स्थित है। यहां माता की हाथ की अंगुलियां गिरी थी। लेकिन, स्थानों को लेकर मतभेद इसे यहां अक्षयवट, मीरापुर और अलोपी स्थानों गिरा माना जाता है। तीनों शक्तिपीठ की शक्ति ललिता हैं।

२९.विरजाक्षेत्रा, उत्कल
ओडिशा के तीन स्थल प्रख्यात हैं- भुवनेश्वर, याजपुर तथा कोणार्क। इसमें याजपुर को महत्त्वपूर्ण स्थान माना जाता है।
याजपुर मंदिर में द्विभुजी देवी विरजा तथा उनके वाहन सिंह की प्रतिमा है। कहते हैं, ब्रह्मा जी द्वारा यहाँ किए गए यज्ञ-कुण्ड से देवी का प्राकट्य हुआ। यह मंदिर वैतरणी नदी घाट से लगभग २ किलोमीटर दूर प्राचीन गरुड़स्तंभ के पास है।
उत्कल शक्तिपीठ याजपुर में माना जाता है जहां माता की नाभि गिरा था। यहां की शक्ति विमला तथा भैरव जगन्नाथ पुरुषोत्तम हैं।
पुरी भुवनेश्वर के आगे है, जो देश के विभिन्न स्थानों से रेल तथा सड़क मार्ग से जुड़ा है। याजपुर हावड़ा वाल्टेयर रेलवे लाइन पर वैतरणी रोड स्टेशन से लगभग १८ किलोमीटर दूर वैतरणी नदी के तट पर स्थित है। याजपुर के लिए वैतरणी रोड स्टेशन से ही बस की सुविधा उपलब्ध है।

३०.कांची शक्तिपीठ
कांची शक्तिपीठ तमिलनाडु राज्य के कांचीपुरम नगर में स्थित है। यहाँ देवी का कंकाल गिरा था। शक्ति ‘देवगर्भा’ तथा भैरव ‘रुरु’ हैं। यहाँ देवी कामाक्षी का भव्य विशाल मंदिर है जिसमें त्रिपुर सुंदरी की प्रतिमूर्ति कामाक्षी देवी की प्रतिमा है। यह दक्षिण भारत का सर्वप्रधान शक्तिपीठ है। बीजाक्षरों का यांत्रिक महत्त्व भी है। ‘क’ कार ब्रह्मा का, ‘अ’ कार विष्णु का, ‘म’ कार महेश्वर का वाचक है। इसीलिए कामाक्षी के तीन नेत्र त्रिदेवों के प्रतिरूप हैं। काँची के तीन भाग हैं- शिवकाँची, विष्णुकाँची और जैनकाँची। ये तीनों अलग नहीं हैं। शिवकाँची नगर का बड़ा भाग है, जो स्टेशन से लगभग-२ किलोमीटर है।
जहां माता का कंकाल गिरा था। यहां की शक्ति देवगर्भा तथा भैरव रुरु हैं।
काँची चेन्नई से ७५ किलोमीटर दूर है। यहाँ का नजदीकी विमान स्थान चेन्नई है। ‘काँची’ चेन्नई, तिरुपति, बैंगलूर से सीधे रेलमार्ग से जुड़ा हुआ है तथा सड़क मार्ग से भी जुड़ा है।

३१. कालमाध्व शक्तिपीठ
इस शक्तिपीठ के बारे कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है।
परन्तु,कालमाधव शक्तिपीठ मध्य प्रदेश राज्य के अमरकंटक में स्थित है। यहां माता का वाम नितम्ब गिरा था। यहां की शक्ति काली तथा भैरव असितांग हैं।

३२.शोण शक्तिपीठ
मध्य प्रदेश के अमरकंटक के नर्मदा मन्दिर शोण शक्तिपीठ है। यहां माता का दक्षिण नितम्ब गिरा था। एक दूसरी मान्यता यह है कि बिहार के सासाराम का ताराचण्डी मन्दिर ही शोण तटस्था शक्तिपीठ है। यहां सती का दायां नेत्रा गिरा था ऐसा माना जाता है। यहां की शक्ति नर्मदा या शोणाक्षी तथा भैरव भद्रसेन हैं।

३३.कामरूप कामाख्या शक्तिपीठ कामगिरि
कामाख्या देवी का मंदिर गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से १० किलोमीटर दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित है।
असम गुवाहाटी के कामगिरि पर्वत पर स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता का योनि गिरा था। इस तीर्थस्थल के मन्दिर में शक्ति की पूजा योनिरूप में होती है। यहाँ कोई देवीमूर्ति नहीं है। योनि के आकार का शिलाखण्ड है, जिसके ऊपर लाल रंग की गेरू के घोल की धारा गिराई जाती है और वह रक्तवर्ण के वस्त्र से ढका रहता है। इस पीठ के सम्मुख पशुबलि भी होती है। यहां की शक्ति कामाख्या तथा भैरव उमानन्द हैं।

३४.जयन्ती शक्तिपीठ
जयन्ती शक्तिपीठ मेघालय के जयन्तिया पहाडी पर स्थित है,शक्तिपीठ शिलांग से ५३ कि.मी. दूर जयंतिया पर्वत के बाउर भाग ग्राम में स्थित है जहां माता का वाम जंघा गिरा था। यहां की शक्ति जयन्ती तथा भैरव क्रमदीश्वर हैं।

३५.मगध् शक्तिपीठ
बिहार की राजधनी पटना में स्थित पटनेश्वरी देवी को ही शक्तिपीठ माना जाता है पटना सिटी चौक से लगभग ५ कि.मी. पश्चिम में महाराज गंज (देवघर) में स्थित है जहां माता का दाहिना जंघा गिरा था। यहां की शक्ति सर्वानन्दकरी तथा भैरव व्योमकेश हैं।

३६.त्रिस्तोता शक्तिपीठ
पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी के शालवाड़ी गांव में तीस्ता नदी पर स्थित है त्रिस्तोता शक्तिपीठ, जहां माता का वामपाद गिरा था। यहां की शक्ति भ्रामरी तथा भैरव ईश्वर हैं।

३७.त्रिपुरी सुन्दरी शक्तित्रिपुरी पीठ
त्रिपुरा के राध किशोर ग्राम में स्थित है त्रिपुरे सुन्दरी शक्तिपीठ, जहां माता का दक्षिण पाद गिरा था। यहां की शक्ति त्रिापुर सुन्दरी तथा भैरव त्रिपुरेश हैं।

३८.विभाष शक्तिपीठ
पश्चिम बंगाल के मिदनापुर के ताम्रलुक ग्रााम में स्थित है विभाष शक्तिपीठ, जहां माता का वाम टखना गिरा था। यहां की शक्ति कापालिनी, भीमरूपा तथा भैरव सर्वानन्द हैं।

३९.देवीकूप पीठ कुरुक्षेत्र (शक्तिपीठ)
हरियाणा के कुरुक्षेत्र जंक्शन के निकट द्वैपायन सरोवर के पास स्थित है कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ, जिसे श्रीदेवीकूप(भद्रकाली पीठ के नाम से मान्य है। माता का दहिने चरण (गुल्पफद्ध गिरे थे। यहां की शक्ति सावित्री तथा भैरव स्थाणु हैं। दिल्ली-अमृतसर रेलमार्ग पर कुरुक्षेत्र स्टेशन दिल्ली से ५५ किलोमीटर दूर है। सड़क मार्ग से मंदिर दिल्ली-अम्बाला मार्ग (जी.टी.रोड) प्रियली बस अड्डे से ९ किलोमीटर दूर है।

४०.युगाद्या शक्तिपीठ (क्षीरग्राम शक्तिपीठ)
युगाद्या शक्तिपीठ बंगाल के पूर्वी रेलवे के वर्धवान जंक्शन से ३९ किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में तथा कटवा से २१ कि.मी दक्षिण-पश्चिम में महाकुमार-मंगलकोट थानांतर्गत क्षीरग्राम में स्थित है- युगाद्या शक्तिपीठ, जहाँ की अधिष्ठात्री देवी हैं- युगाद्या तथा भैरव हैं- क्षीर कण्टक। , यहां सती के दाहिने चरण का अंगूठा गिरा था।

४१.विराट का अम्बिका शक्तिपीठ
राजस्थान के गुलाबी नगरी जयपुर के वैराटग्राम में स्थित है विराट शक्तिपीठ, जहां माता का दक्षिण पादांगुलियां गिरी थीं। यहां की शक्ति अंबिका तथा भैरव अमृत हैं। जयपुर तथा अलवर दोनों स्थानों से विराट ग्राम तक आवागमन के लिए मार्ग हैं

४२.काली शक्तिपीठ
कालीघाट काली मंदिर पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर के कालीघाट में स्थित देवी काली का प्रसिद्ध मंदिर है। कोलकाता में भगवती के अनेक प्रख्यान स्थल हैं। परंपरागत रूप से हावड़ा स्टेशन से ७ किलोमीटर दूर काली घाट के काली मंदिर को शक्तिपीठ माना जाता है,, जहां माता के दाएं पांव की अंगूठा छोड़ ४ अन्य अंगुलियां गिरी थीं। यहां की शक्ति कालिका तथा भैरव नकुलेश हैं।

४३.मानस शक्तिपीठ
तिब्बत के मानसरोवर तट पर स्थित है मानस शक्तिपीठ, जहां माता का दाहिना हथेली का निपात हुआ था। यहां की शक्ति की दाक्षायणी तथा भैरव अमर हैं।

४४.लंका शक्तिपीठ
श्रीलंका में स्थित है लंका शक्तिपीठ, जहां माता का नूपुर गिरा था। यहां की शक्ति इन्द्राक्षी तथा भैरव राक्षसेश्वर हैं। लेकिन, उस स्थान ज्ञात नहीं है कि श्रीलंका के किस स्थान पर गिरे थे।

४५.गण्डकी शक्तिपीठ
नेपाल में गण्डकी नदी के उद्गमस्थल पर गण्डकी शक्तिपीठ में सती के “दक्षिणगण्ड” (कपोल) का पतन हुआ था। , जहां सती के दक्षिणगण्ड(कपोल) गिरा था। यहां शक्ति `गण्डकी´ तथा भैरव `चक्रपाणि´ हैं।

४६.गुह्येश्वरी शक्तिपीठ
नेपाल में पशुपतिनाथ मंदिर से थोड़ी दूर बागमती नदी की दूसरी ओर गुह्येश्वरी शक्तिपीठ है।,यह शक्तिपीठ किरातेश्वर महादेव मंदिर के समीप पशुपतिनाथ मंदिर से सुदूर पूर्व बागमती गंगा के दूसरी तरफ एक टीले पर विराजमान है। जहां माता सती के दोनों जानु (घुटने) गिरे थे। यहां की शक्ति `महामाया´ और भैरव `कपाल´ हैं।

४७.हिंगलाज शक्तिपीठ
शक्तिपीठ २५.३डिग्री. अक्षांश, ६५.३१डिग्री. देशांतर के पूर्वमध्य, सिंधु नदी के मुहाने पर (हिंगोल नदी के तट पर) पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के हिंगलाज नामक स्थान पर, कराची से १४४ किलोमीटर दूर उत्तर-पश्चिम में स्थित है। कराची से फ़ारस की खाड़ी की ओर जाते हुए मकरान तक जलमार्ग तथा आगे पैदल जाने पर ७वें मुकाम पर चंद्रकूप तीर्थ है। अधिकांश यात्रा मरुस्थल से होकर तय करनी पड़ती है, जो अत्यंत दुष्कर है। आगे १३वें मुकाम पर हिंगलाज है। यहीं एक गुफा के अंदर जाने पर देवी का स्थान है। यहाँ शक्तिरूप ज्योति के दर्शन होते हैं। , जहां माता का ब्रह्मरन्ध्र गिरा था।

४८. सुगंधा- सुनंदा शक्तिपीठ
यह शक्तिपीठ बांग्लादेश में है। बरीसाल से २१ किलोमीटर उत्तर में शिकारपुर ग्राम में सुंगधा (सुनंदा) नदी के तट पर स्थित उग्रतारा देवी का मंदिर ही शक्तिपीठ माना जाता है।, जहां माता का नासिका गिरा था। यहां की देवी सुनन्दा है तथा भैरव त्रयम्बक हैं।

४९.करतोयाघाट शक्तिपीठ
बंग्लादेश भवानीपुर के बेगड़ा में करतोया नदी के तट पर स्थित है करतोयाघाट शक्तिपीठ, जहां माता का वाम तल्प गिरा था। यहां देवी अपर्णा रूप में तथा शिव वामन भैरव रूप में वास करते हैं।

५०.चट्टल शक्तिपीठ
देवी का यह पीठ बांग्लादेश में चटगाँव से ३८ किलोमीटर दूर सीताकुण्ड स्टेशन के पास चंद्रशेखर पर्वत पर स्थित भवानी मंदिर है। जहां माता का दाहिना बाहु यानी भुजा गिरा था। यहां की शक्ति भवानी तथा भेरव चन्द्रशेखर हैं।

५१. यशोरेश्वरी शक्तिपीठ
यह शक्तिपीठ वर्तमान बांग्लादेश में खुलना ज़िले के जैसोर नामक नगर में स्थित है। , जहां माता का बायीं हथेली गिरा था। यहां शक्ति यशोरेश्वरी तथा भैरव चन्द्र हैं।

 
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