ब्राह्मण कौन है ?

ब्राह्मण कौन है ? ब्राह्मण कौन है ?

ब्राह्मण कौन है ?
(1)
( वज्रसूचि उपनिषद् के अनुसार )
वज्रसुचिकोपनिषद ( वज्रसूचि उपनिषद् ) यह उपनिषद सामवेद से सम्बद्ध है ! इसमें कुल ९ मंत्र हैं ! सर्वप्रथम चारों वर्णों में से ब्राह्मण की प्रधानता का उल्लेख किया गया है
वज्रसूचीं प्रवक्ष्यामि शास्त्रंज्ञानभेदनम ! दूषणं ज्ञानहीनानां भूषणं ज्ञान चक्षुषाम !!१!!
अज्ञान नाशक, ज्ञानहीनों के दूषण, ज्ञान नेत्र वालों के भूषन रूप वज्रसूची उपनिषद का वर्णन करता हूँ !!
ब्रह्मक्षत्रियवैश्यशूद्रा इति चत्वारो वर्णास्तेषां वर्णानां ब्राह्मण एव प्रधान इति वेद्वचनानुरूपं स्मृतिभिरप्युक्तम ! तत्र चोद्यमस्ति को वा ब्राह्मणो नाम किं जीवः किं देहः किं जातिः किं ज्ञानं किं आर्म किं धार्मिक इति !!२!!
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये चार वर्ण हैं ! इन वर्णों में ब्राह्मण ही प्रधान है, ऐसा वेद वचन है और स्मृति में भी वर्णित है ! अब यहाँ प्रश्न यह उठता है कि ब्राह्मण कौन है ? क्या वह जीव है अथवा कोई शरीर है अथवा जाति अथवा कर्म अथवा ज्ञान अथवा धार्मिकता है ?
तत्र प्रथमो जीवो ब्राह्मण इति चेतन्न ! अतीतानागतानेकदेहानां जीवस्यैकरुपत्वात एकस्यापी कर्मवशादनेकदेहसम्भवात सर्वशरीराणां जीवस्यैकरुपत्वाच्च ! तस्मान्न जीवो ब्राह्मण इति !!३!!
इस स्थिति में यदि सर्वप्रथम जीव को ही ब्राह्मण मानें ( कि ब्राह्मण जीव है), तो यह संभव नहीं है; क्योंकि भूतकाल और भविष्यतकाल में अनेक जीव हुए होंगें ! उन सबका स्वरुप भी एक जैसा ही होता है ! जीव एक होने पर भी स्व-स्व कर्मों के अनुसार उनका जन्म होता है और समस्त शरीरों में, जीवों में एकत्व रहता है, इसलिए केवल जीव को ब्राह्मण नहीं कह सकते !
तर्हि देहो ब्राह्मण इति चेतन्न ! आचाण्डालादिपर्यन्तानां मनुष्याणां पान्चभौतिकत्वेन देहस्यैकरुपत्वाज्जरामरणधर्माधर्मादिसाम्यदर्शनाद ब्राह्मणः श्वेतवर्णः क्षत्रियो रक्तवर्णो वैश्यः पीतवर्णः शूद्रः कृष्णवर्ण इति नियमाभावात ! पित्रादिशरीरदहने पुत्रादीनां ब्रह्मह्त्यादिदोषसंभावाच्च ! तस्मान्न देहो ब्राह्मण इति !!४!!
क्या शरीर ब्राह्मण (हो सकता) है? नहीं, यह भी नहीं हो सकता ! चांडाल से लेकर सभी मानवों के शरीर एक जैसे ही अर्थात पांचभौतिक होते हैं, उनमें जरा-मरण, धर्म-अधर्म आदि सभी सामान होते हैं ! ब्राह्मण- गौर वर्ण, क्षत्रिय- रक्त वर्ण , वैश्य- पीत वर्ण और शूद्र- कृष्ण वर्ण वाला ही हो, ऐसा कोई नियम देखने में नहीं आता तथा (यदि शरीर ब्राह्मण है तो ) पिता, भाई के दाह संस्कार करने से पुत्र आदि को ब्रह्म हत्या का दोष भी लग सकता है ! अस्तु, केवल शरीर का ब्राह्मण होना भी संभव नहीं है !!
तर्हि जातिर्ब्राह्मण इति चेतन्न ! तत्रजात्यंतरजंतुष्वनेकजातिसंभवा महर्षयो बहवः सन्ति ! ऋष्यश्रृंगो मृग्या: कौशिकः कुशात जाम्बूको जम्बूकात ! वाल्मिको वल्मिकात व्यासः कैवर्तकन्यकायाम शंशपृष्ठात गौतमः वसिष्ठ उर्वश्याम अगस्त्यः कलशे जात इति श्रुत्वात ! एतेषम जात्या विनाप्यग्रे ज्ञानप्रतिपादिता ऋषयो बहवः सन्ति ! तस्मान्न जातिर्ब्राह्मण इति !!५!!
क्या जाति ब्राह्मण है ( अर्थात ब्राह्मण कोई जाति है )? नहीं, यह भी नहीं हो सकता; क्योंकि विभिन्न जातियों एवं प्रजातियों में भी बहुत से ऋषियों की उत्पत्ति वर्णित है ! जैसे – मृगी से श्रृंगी ऋषि की, कुश से कौशिक की, जम्बुक से जाम्बूक की, वाल्मिक से वाल्मीकि की, मल्लाह कन्या (मत्स्यगंधा) से वेदव्यास की, शशक पृष्ठ से गौतम की, उर्वशी से वसिष्ठ की, कुम्भ से अगस्त्य ऋषि की उत्पत्ति वर्णित है ! इस प्रकार पूर्व में ही कई ऋषि बिना (ब्राह्मण) जाति के ही प्रकांड विद्वान् हुए हैं, इसलिए केवल कोई जाति विशेष भी ब्राह्मण नहीं हो सकती है !
तर्हि ज्ञानं ब्राह्मण इति चेतन्न ! क्षत्रियादयोSपि परमार्थदर्शिनोSभिज्ञा बहवः सन्ति !!६!!
क्या ज्ञान को ब्राह्मण माना जाये ? ऐसा भी नहीं हो सकता; क्योंकि बहुत से क्षत्रिय (रजा जनक) आदि भी परमार्थ दर्शन के ज्ञाता हुए हैं (होते हैं) ! अस्तु, केवल ज्ञान भी ब्राह्मण नहीं हो सकता है !
तर्हि कर्म ब्राह्मण इति चेतन्न ! सर्वेषां प्राणिनां प्रारब्धसंचितागामिकर्मसाधर्म्यदर्शानात्कर्माभिप्रेरिता: संतो जनाः क्रियाः कुर्वन्तीति ! तस्मान्न कर्म ब्राह्मण इति !!७!!
तो क्या कर्म को ब्राह्मण माना जाये? नहीं ऐसा भी संभव नहीं है; क्योंकि समस्त प्राणियों के संचित, प्रारब्ध और आगामी कर्मों में साम्य प्रतीत होता है तथा कर्माभिप्रेरित होकर ही व्यक्ति क्रिया करते हैं ! अतः केवल कर्म को भी ब्राह्मण नहीं कहा जा सकता है !!
तर्हि धार्मिको इति चेतन्न ! क्षत्रियादयो हिरण्यदातारो बहवः सन्ति ! तस्मान्न धार्मिको ब्राह्मण इति !!८!!
क्या धार्मिक , ब्राह्मण हो सकता है? यह भी सुनिश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है; क्योंकि क्षत्रिय आदि बहुत से लोग स्वर्ण आदि का दान-पुण्य करते रहते हैं ! अतः केवल धार्मिक भी ब्राह्मण नहीं हो सकता है !!
तर्हि को वा ब्राह्मणो नाम ! यः कश्चिदात्मानमद्वितीयं जातिगुणक्रियाहीनं षडूर्मीषडभावेत्यादिसर्वदोषरहितं सत्यज्ञानानन्दानन्तस्वरूपं स्वयं निर्विकल्पमशेषकल्पाधारमशेषभूतान्तर्यामित्वेन वर्तमानमन्तर्बहीश्चाकाशवदनुस्यूतमखंडानन्द स्वभावमप्रमेयमनुभवैकवेद्यमापरोक्षतया भासमानं करतलामलकवत्साक्षादपरोक्षीकृत्य कृतार्थतया कामरागादिदोषरहितः शमदमादिसम्पन्नो भावमात्सर्यतृष्णाशामोहादिरहितो दंभाहंकारादिभिरसंस्पृष्टचेता वर्तत एवमुक्तलक्षणो यः स एव ब्राह्मण इति श्रुतिस्मृतिपुराणेतिहासानामभिप्रायः ! अन्यथा हि ब्राह्मणत्वसिद्धिर्नासत्येव ! सच्चिदानंदमात्मानमद्वितीयं ब्रह्म भावयेदात्मानं सच्चिदानंद ब्रह्म भावयेदि त्युपनिषत !!९!!
तब ब्राह्मण किसे माना जाये ? (इसका उत्तर देते हुए उपनिषत्कार कहते हैं – ) जो आत्मा के द्वैत भाव से युक्त ना हो; जाति गुण और क्रिया से भी युक्त ण हो; षड उर्मियों और षड भावों आदि समस्त दोषों से मुक्त हो; सत्य, ज्ञान, आनंद स्वरुप, स्वयं निर्विकल्प स्थिति में रहने वाला , अशेष कल्पों का आधार रूप , समस्त प्राणियों के अंतस में निवास करने वाला , अन्दर-बाहर आकाशवत संव्याप्त ; अखंड आनंद्वान , अप्रमेय, अनुभवगम्य , अप्रत्येक्ष भासित होने वाले आत्मा का करतल आमलकवत परोक्ष का भी साक्षात्कार करने वाला; काम-रागद्वेष आदि दोषों से रहित होकर कृतार्थ हो जाने वाला ; शम-दम आदि से संपन्न ; मात्सर्य , तृष्णा , आशा,मोह आदि भावों से रहित; दंभ, अहंकार आदि दोषों से चित्त को सर्वथा अलग रखने वाला हो, वही ब्राह्मण है; ऐसा श्रुति, स्मृति-पूरण और इतिहास का अभिप्राय है ! इस (अभिप्राय) के अतिरिक्त एनी किसी भी प्रकार से ब्राह्मणत्व सिद्ध नहीं हो सकता ! आत्मा सैट-चित और आनंद स्वरुप तथा अद्वितीय है ! इस प्रकार ब्रह्मभाव से संपन्न मनुष्यों को ही ब्राह्मण माना जा सकता है
! यही उपनिषद का मत है !

(2)यास्क मुनि के अनुसार ब्राह्मण कौन ?
-जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् भवेत द्विजः।वेद पाठात् भवेत् विप्रःब्रह्म जानातीति ब्राह्मणः।।
अर्थात – व्यक्ति जन्मतः शूद्र है। संस्कार से वह द्विज बन सकता है। वेदों के पठन-पाठन से विप्र हो सकता है। किंतु जो ब्रह्म को जान ले,वही ब्राह्मण कहलाने का सच्चा अधिकारी है।
– योग सूत्र व भाष्य के रचनाकार पतंजलि के अनुसार विद्या तपश्च योनिश्च एतद् ब्राह्मणकारकम्।विद्यातपोभ्यां यो हीनो जातिब्राह्मण एव स:॥
अर्थात- ”विद्या, तप और ब्राह्मण-ब्राह्मणी से जन्म ये तीन बातें जिसमें पाई जायँ वही पक्का ब्राह्मण है, पर जो विद्या तथा तप से शून्य है वह जातिमात्र के लिए ब्राह्मण है, पूज्य नहीं हो सकता” (पतंजलि भाष्य 51-115)।

(३)महर्षि मनु के अनुसार विधाता शासिता वक्ता मो ब्राह्मण उच्यते।तस्मै नाकुशलं ब्रूयान्न शुष्कां गिरमीरयेत्॥
अर्थात-शास्त्रो का रचयिता तथा सत्कर्मों का अनुष्ठान करने वाला, शिष्यादि की ताडनकर्ता,वेदादि का वक्ता और सर्व प्राणियों की हितकामना करने वाला ब्राह्मण कहलाता है। अत: उसके लिए गाली-गलौज या डाँट-डपट के शब्दों का प्रयोग उचित नहीं” (मनु; 11-35)

(४)महाभारत के कर्ता वेदव्यास और नारदमुनि के अनुसार “जो जन्म से ब्राह्मण हे किन्तु कर्म से ब्राह्मण
नहीं हे उसे शुद्र (मजदूरी) के काम में लगा दो” (सन्दर्भ ग्रन्थ – महाभारत)

कमल के पत्ते पर जल और आरे की नोक पर सरसों की तरह जो विषय-भोगों में लिप्त नहीं होता, मैं उसे ही ब्राह्मण कहता हूँ।

जो चर-अचर सभी प्राणियों में प्रहार-विरत हो, जो न मारता है और न मारने की प्रेरणा ही देता है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ।

जो ऐसी अकर्कश, आदरयुक्त और सत्यवाणी बोलता हो कि जिससे किसी को जरा भी पीड़ा नहीं पहुँचती हो, मैं उसे ब्राह्मण कहता हूँ।

बड़ी हो चाहे छोटी, मोटी हो या पतली, शुभ हो या अशुभ, जो संसार में बिना दी हुई किसी भी चीज को नहीं लेता, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ।

जिसने यहाँ पुण्य और पाप दोनों की ही आसक्ति छोड़ दी है और जो शोकरहित, निर्मल और परिशुद्ध है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ।

मानुष भोगों का लाभ छोड़ दिव्य भोगों के लाभ को भी जिसने लात मार दी है, किसी लाभ-लोभ में जो आसक्त नहीं, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ।

राग और घृणा का जिसने त्याग कर दिया है, जिसका स्वभाव शीतल है और जो क्लेशरहित है, ऐसे सर्वलोक-विजयी वीर पुरुष को मैं ब्राह्मण कहता हूँ।

जिसके पूर्व, पश्चात और मध्य में कुछ नहीं है और जो पूर्णतया परिग्रह-रहित है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ।

जो ध्यानी, निर्मल, स्थिर, कृतकृत्य और आस्रव (चित्तमल) से रहित है, जिसने सत्य को पा लिया है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ।

जो मन, वचन और काया से कोई पाप नहीं करता अर्थात इन तीनों पर जिसका संयम है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ।

न जटा रखने से कोई ब्राह्मण होता है, न अमुक गोत्र से और न जन्म से ही। जिसने सत्य और धर्म का साक्षात्कार कर लिया, वही पवित्र है, वही ब्राह्मण है।

जो गंभीर प्रज्ञावाला है, मेधावी है, मार्ग और अमार्ग का ज्ञाता है और जिसने सत्य पा लिया है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ।

जिसने घृणा का क्षय कर दिया है, जो भली-भाँति जानकर अकथ पद का कहने वाला है और जिसने अगाध अमृत प्राप्त कर लिया है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ।

जो पूर्वजन्म को जानता है, सुगति और अगति को देखता है और जिसका पुनर्जन्म क्षीण हो गया है तथा जो अभिमान (दिव्य ज्ञान) परायण है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ। जन्म से कोई ब्राह्मण नहीं होता।

(९) भविष्य पुराण के अनुसारः
निवृत्तः पापकर्मेभ्योः ब्राह्मणः से विधीयते ।
शूद्रोSपिशीलसम्पन्नो ब्राह्मणदधिकोभवेत् ॥ भविष्य पुराण . अ. 44।

जो पापकर्म से बचा हुआ है, वही सच्चे अर्थों में ब्राह्मण है । सदाचार सम्पन्न शूद्र भी ब्राह्मण से अधिक है । आचारहीन ब्राह्मण शूद्र से भी गया बीता है । विवेक, सदाचार, स्वाध्याय और परमार्थ ब्राह्मणत्व की कसौटी है । जो इस कसौटी पर खरा उतरता है, वही सम्पूर्ण अर्थों में सच्चा ब्राह्मण है ।

(१०)वृहद्धर्ग पुराणके अनुसारः
ब्रह्मणस्य तू देहो यं न सुखाय कदाचन ।
तपः क्लेशाय धर्माय प्रेत्य मोक्षाय सर्वदा ॥ वृहद्धर्ग पुराण 2/44॥

ब्राह्मण की देह विषयोपभोग के लिये कदापि नहीं है । यह तो सर्वथा तपस्या का क्लेश सहने और धर्म का पालन करने और अंत मे मुक्ति के लिये हि उत्पन्न होती है ।

ब्राह्मण का अर्थ है विचारणा और चरित्रनिष्ठा का उत्त्कृष्ट होना ।

(११)मनुस्मृति के अनुसारः
सम्मनादि ब्राह्मणो नित्यभुद्विजेत् विषादिव ।
अमृतस्य चाकांक्षे दव मानस्य सर्वदा ॥ मनुस्मृति 1/162॥

ब्राह्मण को चाहिये कि वह सम्मान से डरता रहे और अपमान की अमृत के समान इच्छा करता रहे ।

वर्ण व्यवस्था की सुरुचिपूर्ण व्यवस्था में ब्राह्मण को समाज में सर्वोपरि स्थान दिया गया है । साथ ही साथ समाज की महान जिम्मेदारियाँ भी ब्राह्मणों को दी गयीं हैं । राष्ट्र एवं समाज के नैतिक स्तर को कायम रखना , उन्हें प्रगतिशीलता एवं विकास की ओर अग्रसर करना , जनजागरण एवं अपने त्यागी तपस्वी जीवन में महान आदर्श उपस्थित कर लोगों को सत्पथ का प्रदर्शन करना, ब्राह्मण जीवन का आधार बनाया गया ।

इसमें कोई संदेह नहीं कि राष्ट्र की जागृति, प्रगतिशीलता एवं महनता उसके ब्राह्मणों पर आधारित होती हैं । ब्राह्मण राष्ट्र निर्माता होते हैं , मानव हृदयों में जनजागरण का गीत सुनाता है , समाज का कर्णधार होता है । देश, काल, पात्र के अनुसार सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन करता है और नवीन प्रकाश चेतना प्रदान करता है । त्याग और बलिदान ही ब्राह्मणत्व की कसौटी होती है ।

राष्ट्र संरक्षण का दायित्व सच्चे ब्राह्मणों पर ही हैं । राष्ट्र को जागृत और जीवंत बनाने का भार इनपर ही है ।

(१२)यजुर्वेद के अनुसारः
वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः । यजुर्वेद

ब्राह्मणत्व एक उपलब्धि है जिसे प्रखर प्रज्ञा, भाव-सम्वेदना, और प्रचण्ड साधना से और समाज की निःस्वार्थ अराधना से प्राप्त किया जा सकता है । ब्राह्मण एक अलग वर्ग तो है ही, जिसमे कोई भी प्रवेश कर सकता है, बुद्ध क्षत्रिय थे, स्वामि विवेकानंद कायस्थ थे, पर ये सभी अति उत्त्कृष्ट स्तर के ब्रह्मवेत्ता ब्राह्मण थे । ”ब्राह्मण” शब्द उन्हीं के लिये प्रयुक्त होना चाहिये, जिनमें ब्रह्मचेतना और धर्मधारणा जीवित और जाग्रत हो , भले ही वो किसी भी वंश में क्युं ना उत्पन्न हुये हों ।

(१३)ऋग्वेद के अनुसारः

ब्राह्मणासः सोमिनो वाचमक्रत , ब्रह्म कृण्वन्तः परिवत्सरीणम् ।
अध्वर्यवो घर्मिणः सिष्विदाना, आविर्भवन्ति गुह्या न केचित् ॥ ऋग्वेद 7/103/8 ॥

ब्राह्मण वह है जो शांत, तपस्वी और यजनशील हो । जैसे वर्षपर्यंत चलनेवाले सोमयुक्त यज्ञ में स्तोता मंत्र-ध्वनि करते हैं वैसे ही मेढक भी करते हैं । जो स्वयम् ज्ञानवान हो और संसार को भी ज्ञान देकर भूले भटको को सन्मार्ग पर ले जाता हो, ऐसों को ही ब्राह्मण कहते हैं । उन्हें संसार के समक्ष आकर लोगों का उपकार करना चाहिये ।

(१४) यस्क मुनि के अनुसार-
जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात्‌ भवेत द्विजः।
वेद पाठात्‌ भवेत्‌ विप्रःब्रह्म जानातीति ब्राह्मणः।।
अर्थात – व्यक्ति जन्मतः शूद्र है। संस्कार से वह द्विज बन सकता है। वेदों के पठन-पाठन से विप्र हो सकता है। किंतु जो ब्रह्म को जान ले, वही ब्राह्मण कहलाने का सच्चा अधिकारी है।

जो पुरोहिताई करके अपनी जीविका चलाता है, वह ब्राह्मण नहीं, याचक है।

ब्राह्मण पर प्रहार नहीं करना चाहिए और ब्राह्मण को भी उस प्रहारक पर कोप नहीं करना चाहिए।

ब्राह्मण वह है जो निष्पाप है, निर्मल है, निरभिमान है, संयत है, वेदांत-पारगत है, ब्रह्मचारी है, ब्रह्मवादी (निर्वाण-वादी) और धर्मप्राण है।

जिसने सारे पाप अपने अंतःकरण से दूर कर दिए हैं, अहंकार की मलीनता जिसकी अंतरात्मा का स्पर्श भी नहीं कर सकती, जिसका ब्रह्मचर्य परिपूर्ण है, जिसे लोक के किसी भी विषय की तृष्णा नहीं है, जिसने अपनी अंतर्दृष्टि से ज्ञान का अंत देख लिया, वही अपने को यथार्थ रीति से ब्राह्मण कह सकता है।

मित्रों, ब्राह्मण की यह कल्पना व्यावहारिक हे के नहीं यह अलग विषय हे किन्तु भारतीय सनातन संस्कृति के हमारे पूर्वजो व ऋषियो ने ब्राह्मण की जो व्याख्या दी हे उसमे काल के अनुसार परिवर्तन करना हमारी मूर्खता मात्र होगी.वेदों-उपनिषदों से दूर रहने वाला और ऊपर दर्शाये गुणों से अलिप्त व्यक्ति चाहे जन्म से ब्राह्मण हों या ना हों लेकिन ऋषियों को व्याख्या में वह ब्राह्मण नहीं हे. अतः आओ हम हमारे कर्म और संस्कार तरफ वापस बढे. “कृण्वन्तो विश्वम् आर्यम”को साकारित करे.

किन्तु जितना सत्य यह हे की केवल जन्म से ब्राह्मण होना संभव नहीं हे. कर्म से कोई भी ब्राह्मण बन सकता है यह भी उतना ही सत्य हे.इसके कई प्रमाण वेदों और ग्रंथो में मिलते हे जेसे…..

(१) ऐतरेय ऋषि दास अथवा अपराधी के पुत्र थे| परन्तु उच्च कोटि के ब्राह्मण बने और उन्होंने ऐतरेय ब्राह्मण और ऐतरेय उपनिषद की रचना की| ऋग्वेद को समझने के लिए ऐतरेय ब्राह्मण अतिशय आवश्यक माना जाता है|
(२) ऐलूष ऋषि दासी पुत्र थे | जुआरी और हीनचरित्र भी थे | परन्तु बाद में उन्होंने अध्ययन किया और ऋग्वेद पर अनुसन्धान करके अनेक अविष्कार किये|ऋषियों ने उन्हें आमंत्रित कर के आचार्य पद पर आसीन किया | (ऐतरेय ब्राह्मण२.१९)
(३) सत्यकाम जाबाल गणिका (वेश्या) के पुत्र थे परन्तु वे ब्राह्मणत्व को प्राप्त हुए |
(४) राजा दक्ष के पुत्र पृषध शूद्र होगए थे,प्रायश्चित स्वरुप तपस्या करके उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया | (विष्णु पुराण ४.१.१४)
(५) राजा नेदिष्ट के पुत्र नाभाग वैश्य हुए|पुनः इनके कई पुत्रों ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया |(विष्णु पुराण ४.१.१३)
(६) धृष्ट नाभाग के पुत्र थे परन्तु ब्राह्मण हुए और उनके पुत्र ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया | (विष्णु पुराण ४.२.२)
(७) आगे उन्हींके वंश में पुनः कुछ ब्राह्मण हुए|(विष्णु पुराण ४.२.२)
(८) भागवत के अनुसार राजपुत्र अग्निवेश्य ब्राह्मण हुए |
(९) विष्णुपुराण और भागवत के अनुसार रथोतर क्षत्रिय से ब्राह्मण बने |
(१०) हारित क्षत्रियपुत्र से ब्राह्मणहुए | (विष्णु पुराण ४.३.५)
(११) क्षत्रियकुल में जन्में शौनक ने ब्राह्मणत्व प्राप्त किया | (विष्णु पुराण ४.८.१) वायु,
विष्णु और हरिवंश पुराण कहते हैं कि शौनक ऋषि के पुत्र कर्म भेद से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण के हुए| इसी प्रकार गृत्समद, गृत्समति और वीतहव्यके उदाहरण हैं |
(१२) मातंग चांडालपुत्र से ब्राह्मण बने |
(१३) ऋषि पुलस्त्य का पौत्र रावण अपनेकर्मों से राक्षस बना |
(१४) राजा रघु का पुत्र प्रवृद्ध राक्षस हुआ |
(१५) त्रिशंकु राजा होते हुए भी कर्मों से चांडाल बन गए थे |
(१६) विश्वामित्र के पुत्रों ने शूद्रवर्ण अपनाया |विश्वामित्र स्वयं क्षत्रिय थे परन्तु बाद उन्होंने ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया |
(१७) विदुर दासी पुत्र थे | तथापि वे ब्राह्मण हुए और उन्होंने हस्तिनापुर साम्राज्य का मंत्री पद सुशोभित किया |

सच्चा ब्राह्मण कौन है ?”
न जटाहि न गोत्तेहि न जच्चा होति ब्राह्मणो। यम्हि सच्चं च धम्मो च सो सुची सो च ब्राह्मणो॥ भगवान बुद्ध धर्म कहते हैं कि ब्राह्मण न तो जटा से होता है, न गोत्र से और न जन्म से। जिसमें सत्य है, धर्म है और जो पवित्र है, वही ब्राह्मण है।

 
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